श्रीराम कथा का पांचवां दिन: राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने लिया हिस्सा।

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तेज दो प्रकार के होते हैं—प्रभाव का तेज., स्वभाव का तेज। गेरूआ
वस्त्र आग में जीने का प्रतीक है और संन्यास का संकेत हैं। श्वेत वस्त्र
संन्यास और त्याग का संकेत हैं।
‘लकड़ी जली तो ऐसे जली, पहले कोयला फिर राख
मीरा जली तो ऐसे जली, न कोयला न राख’
जो कथा में आते हैं वह ज्ञान के प्यासे हैं, भक्ति के प्यासे हैं, धर्म
के प्यासे हैं,, जिनको प्यास ही नहीं वो मोल-भाव, तर्क-वितर्क करते हैं।
तुलसी का पनघट यहां हमारी प्यास बुझाने को मौजूद है।
बापू ने इस दौरान एक भक्त दीप्ति की कविता पढ़ी
मुझे उस गुनाह की सज़ा मिली, जो मैंने किया ही नहीं
ये सज़ा नहीं साजिश थी, मुझे तोड़ने की
मैं नहीं टूटी, फिर मुझे उससे बड़ी सज़ा मिली
वो गुनाह क्या थी, मैं टूटी नहीं
कथा के पांचवें दिन बापू ने श्री कृष्ण की मृत्यु का अनोखा विवरण दिया।
इस दौरान बापू भी भावुक हो गए और उनकी आंखे भी पानी से भर गई। बापू ने
कहा- जिसमें अत्यंत क्रोध की भावना है उसमें अत्यंत करुणा की संभावना है।
बापू ने मन की महाभारत के वर्णन में बताया, श्री कृष्ण से सरल चित्त आज
तक विश्व में किसी का नहीं हुआ। कभी किसी संत को देखो तो ये मान लेना
थोड़ी देर के लिए श्री कृष्ण को देख लिया। कृष्ण के महानिर्वाण का विवरण
देते हुए बापू ने विस्तारपूर्वक एक-एक घटना का उल्लेख बेहद मार्मिकता से
किया।
बापू ने बाताया- तीन प्रकार के प्रभु का अवतरण होता है—पहला अवतार के रूप
में, दूसरा बुद्ध पुरूष के रूप में, तीसरा ग्रंथ के रूप में।
कथा के आखिर में बापू ने एक बार फिर मानव रचना शैक्षणिक संस्थान का
धन्यवाद किया। उन्होंने कहा- बहुत अच्छा लगा आपने हर जगह आग्रहकर्ता शब्द
लिखा है। तारीफ करते हुए बापू ने कहा, शैक्षणिक संस्थान है न, शब्दों का
चयन अच्छा है। राज्यपाल ने भी आपके संस्थान की प्रशंसा की है, ऐसे में
आपकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
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